यूँ रेशम के धागों सा महीन सच पिरोतें है झूठ की चादरों में
कुछ गाने सा , कुछ रोने सा
कहीं कोई चिल्ला रहा है
गा रहा है करोड़ों बार सुने - सुनाये शर्म - धर्म के गीत
थके हुए, बुझे हुए झंडे - डंडे के गीत
आंसुओं के खिलाफ शब्दों का षडयंत्र
भूख और दंगो पर भाषण देते पंडो का प्रपंच
कहीं है इस बोझिल बकवास का कोई अंत?
ख़ुद को गालिया देते महान बनते मसीह
कोई टांग क्यों नही देता इन्हे सलीबों पर
यादें- गुनगुनाती - शाम की दहलीज पर
सूखे ,
कटे पेड़ से गिरे हुए, उन सलीबों पर
फिर
इत्मीनान से लेट सिगरेट पीते
शरारती इठलाती हवा में लिखूंगा
पिछली रात के आसुंओं का हिसाब
काजल का भीगा सा अँधेरा पीते
लहराती फुसफुसाती रात की परतों पे लिखूंगा
वक्ष में सुगबुगाते मंत्रों की किताब
पंडो पुजारियों चोरों के सरताज
आंचलों, फूलों और चुप- चुप रोती
आँखों
की आस
अब भी बुलाती है मुझे शाम के उस पार
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