Saturday, November 8, 2008

अभी देर है अभी और देर है कुछ होने में ! बाहर खिड़की के दुनिया है , तेज लौटते कदमों की थकान भरी उमंग, कहीं बेदम चेहरे - लेकिन दुनिया है ! भीतर अँधेरा है ठीक से अँधेरा भी नही ! मै हूँ! खिड़की मिट सी जाती है - Why are good memories often painful? पीले सूट कुर्सी पर सिमट कर बैठे हुए उसने पूछा था या बताया था ! मालूम नही ! उसकी ठोडी उसके घुटने पर आराम कर रही थी ! पर ये तब की बात थी !

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