Wednesday, May 25, 2011

कभी शाम का कभी इंतज़ार का
कभी किसी शाम के इंतज़ार का
इंतज़ार है ।














कोणार्क
के रतीले मैदानों पर एक लौटा हुआ समुद्र ताक रहा है दूर बादलों के फाहों की अलसाई चाल को ! तपते पत्थरों में तपे देवता कसमसा रहे है । बुला रहे है ! अभी तकलीफ में हूँ नही आ सकता ! इतिहास और स्मृतियों का फर्क - मृत और सजीव का फर्क, दूर तक गर्म अहसास उगलती रेतीले वीराने में खो जाती है! कहीं कोई है !