यूँ रेशम के धागों सा महीन सच पिरोतें है झूठ की चादरों में
कुछ गाने सा , कुछ रोने सा
कहीं कोई चिल्ला रहा है
गा रहा है करोड़ों बार सुने - सुनाये शर्म - धर्म के गीत
थके हुए, बुझे हुए झंडे - डंडे के गीत
आंसुओं के खिलाफ शब्दों का षडयंत्र
भूख और दंगो पर भाषण देते पंडो का प्रपंच
कहीं है इस बोझिल बकवास का कोई अंत?
ख़ुद को गालिया देते महान बनते मसीह
कोई टांग क्यों नही देता इन्हे सलीबों पर
यादें- गुनगुनाती - शाम की दहलीज पर
सूखे , कटे पेड़ से गिरे हुए, उन सलीबों पर
फिर
इत्मीनान से लेट सिगरेट पीते
शरारती इठलाती हवा में लिखूंगा
पिछली रात के आसुंओं का हिसाब
काजल का भीगा सा अँधेरा पीते
लहराती फुसफुसाती रात की परतों पे लिखूंगा
वक्ष में सुगबुगाते मंत्रों की किताब
पंडो पुजारियों चोरों के सरताज
आंचलों, फूलों और चुप- चुप रोती आँखों
की आस
अब भी बुलाती है मुझे शाम के उस पार
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आप बहुत संवेदनशील मालूम पड़ते हैं। पर, जिंदगी की जद्दोजेहद इससे कहीं बड़ी चीज है। चचा गालिब कह गए हैं न ... और भी गम हैं जमाने में, एक मोहब्बत के सिवा। खिड़की खोलिए, बहुत सारे काम छूट गए हैं कामरेड, उन्हें कौन करेगा?
ReplyDeletekya bhav hain jandar
ReplyDeletenarayan narayan
waah aapne to shabdo or aasuon ko ek sath piro kar jo mala banae hai....
ReplyDeleteaanand aa gaya.....likhte raho....
jai ho magalmay ho...
गा रहा है करोड़ों बार सुने - सुनाये शर्म - धर्म के गीत
ReplyDeleteथके हुए, बुझे हुए झंडे - डंडे के गीत
आंसुओं के खिलाफ शब्दों का षडयंत्र
भूख और दंगो पर भाषण देते पंडो का प्रपंच
कहीं है इस बोझिल बकवास का कोई अंत?
एकदम सच लिखा है...कई युवाओं की भावनाओं को जैसे आपने आवाज दे दी। ये दर्द कुछ अपना सा लगता है। एक अच्छी कविता के लिए आपको साधुवाद।
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)
आपने बहुत अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteभावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
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ReplyDeleteEmotive
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